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Showing posts from August, 2017
sookshm shikshan
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सूक्ष्म शिक्षण को नियंत्रित अभ्यास की व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है जिससे किसी निश्चित शिक्षण व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ नियंत्रित परिस्थितियों में शिक्षण का अभ्यास करना संभव हो पाता है। परिभाषा टीचर शिक्षा के क्षेत्र में सूक्ष्म शिक्षण एक नया आविष्कार है। यह एक अवसर प्रदान करता है जिससे एक समय पर एक ही कौशल को चुना जा सकता है और एक नियोजित तरीके से इसका अभ्यास करना है। सूक्ष्म शिक्षण एक सुनियोजित शिक्षण है: कक्षा के आकार को 5-10 लोगों में सीमित करना। समय सीमा को 36 मिनट तक कम करना। पाठ के आकार को कम करना। शिक्षण कौशल को कम करना। सूक्ष्म शिक्षण टीचर शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम में एक नवीनतम् आविष्कार है जो कि टीचर के व्यवहार को निश्चित उद्देश्यों के अनुसार ढालने में सहायक होता है। उद्देश्य एक टीचर प्रशिक्षु को सीखने और नए शिक्षण कौशल को नियंत्रित परिस्थितियों में आत्मसात् करने योग्य बनाना। एक टीचर प्रशिक्षु को कई शिक्षण कौशल में योग्य बनाना। एक टीचर प्रशिक्षु को शिक्षण में विश्वास करने योग्य बनाना। शिक्षार्थियों में नए कौशल का विक...
shikshan koushal
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शिक्षण कौशल ( Teaching Skill) शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक को अनेक कार्य एक साथ करने पड़ते हैं जैसे लिखना, प्रश्न पूछना, स्पष्ट करना, प्रदर्शन करना आदि इसलिये इसे क्रियाओं का सकुल कहा जाता है। अध्यापक का कार्य विद्यार्थी को इन क्रियाओं में संलग्न करना है। यह शिक्षण कौशल काफी तकनीकी युक्त और परिश्रमपूर्ण होते हैं। इन शिक्षण कौशलों की प्रकृति एक जैसी नही होती। इनमे निहित शिक्षण व्यवहारों में भी काफी अन्तर पाया जाता है और इसलिए उन सभी का अभ्यास और उन्हें विकसित करने की प्रक्रिया में अन्तर पाया जाना स्वाभाविक ही हैं। वास्तव में शिक्षण कौशलों द्वारा शिक्षक के व्यवहार प्रदर्शित होते है। शिक्षक की सभी क्रियाएँ विद्यार्थियों के अधिगम की ओर केन्द्रित रहती हैं। शिक्षक की इन क्रियाओं में कभी व्याख्यान देना, कभी उदाहरण प्रस्तुत करना, कभी विशिष्ट शब्दों की व्याख्या करना तथा कभी कक्षा में कुछ करके दिखाना आदि सम्मिलित होता है। शिक्षण प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाली इस प्रकार की सभी क्रियाएँ ही शिक्षण कौशल कहलाती हैं। यही विभिन्न शिक्षण क्रियाओं की सफलता ही शिक्षण कला बन जाती हैं। संक्षेप में शिक...
hindi bhasha ka vikas
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हिन्दी भाषा - भूमिका : हिन्दी भारोपीय परिवार की आधुनिक काल की प्रमुख भाषाओं में से एक है। भारतीय आर्य भाषाओं का विकास क्रम इस प्रकार है:- संस्कृत >> पालि >> प्राकृत >> अपभ्रंश >> हिन्दी व अन्य आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ । आधुनिक आर्य भाषाएँ उत्तर भारत में बोली जाती हैं। दक्षिण भारत की प्रमुख भाषाएँ तमिल (तमिलनाडु), तेलुगू (आंध्र प्रदेश), कन्नड (कर्नाटक) और मलयालम (केरल) द्रविड़ परिवार की भाषाएँ हैं। भाषा नदी की धारा के समान चंचल होती है। यह रुकना नहीं जानती, यदि कोई भाषा को बलपूर्वक रोकना भी चाहे तो यह उसके बंधन को तोड़ आगे निकाल जाती है। यही भाषा की स्वाभाविक प्रकृति और प्रवृत्ति है। संस्कृत भारत की सबसे प्राचीन भाषा है जिसे आर्य भाषा या देव भाषा भी कहा जाता है। हिन्दी इसी आर्य भाषा संस्कृत की उत्तराधिकारिणी मानी जाती है हिंदी भाषा के विकास क्रम में भाषा की पूर्वोक्त गत्यात्मकता और समयानुकूल बदलते रहने की स्वाभाविक प्रकृति स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। हिंदी का जन्म संस्कृत की ही कोख से हुआ है। जिसके साढ़े तीन हजार से अधिक वर्षों क...
Hindi bhasha ka vikas
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हिन्दी” वस्तुत: फारसी भाषा का शब्द है,जिसका अर्थ है-हिन्दी का या हिंद से सम्बन्धित। हिन्दी शब्द की निष्पत्ति सिन्धु -सिंध से हुई है क्योंकि ईरानी भाषा में “स” को “ह” बोला जाता है। इस प्रकार हिन्दी शब्द वास्तव में सिन्धु शब्द का प्रतिरूप है। कालांतर में हिंद शब्द सम्पूर्ण भारत का पर्याय बनकर उभरा । इसी “हिंद” से हिन्दी शब्द बना। आज हम जिस भाषा को हिन्दी के रूप में जानते है,वह आधुनिक आर्य भाषाओं में से एक है। आर्य भाषा का प्राचीनतम रूप वैदिक संस्कृत है,जो साहित्य की परिनिष्ठित भाषा थी। वैदिक भाषा में वेद,संहिता एवं उपनिषदों – वेदांत का सृजन हुआ है। वैदिक भाषा के साथ-साथ ही बोलचाल की भाषा संस्कृत थी,जिसे लौकिक संस्कृत भी कहा जाता है। संस्कृत का विकास उत्तरी भारत में बोली जाने वाली वैदिककालीन भाषाओं से माना जाता है। अनुमानत: ८ वी.शताब्दी ई.पू.में इसका प्रयोग साहित्य में होने लगा था। संस्कृत भाषा में ही रामायण तथा महाभारत जैसे ग्रन्थ रचे गये। वाल्मीकि ,व्यास,कालिदास,अश्वघोष,भारवी,माघ,भवभूति,विशाख,मम्मट,दंडी तथा श्रीहर्ष आदि संस्कृत की महान विभूतियाँ है। इसका साहित्य विश्व के समृद्ध साहि...
shikshan- shikshan ke sidhanth
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शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है जिस पर प्रत्येक देश की शासन प्रणाली, सामाजिक दर्शन तथा मूल्यों एवं संस्कृति का प्रभाव पड़ता रहता है। जिस देश की जैसी शासन प्रणाली तथा दार्शनिक विचार धारा होगी, वहाँ की शिक्षण प्रक्रिया पर वैसा ही प्रभाव पड़ेगा। इस प्रक्रिया के वैज्ञानिक एवं कलात्मक दोनों पक्ष हैं। शिक्षण में जब हम उसकी समस्त प्रक्रियाओं का आधार मनोविज्ञान है, का तर्क देते हैं तब यह विज्ञान हो जाता है और जब हम शिक्षण को मार्गदर्शन करने वाला, छात्रों को उत्सुक एवं जागृत बनाने वाला कहते हंै तब यह कलात्मक रूप लेने लगता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शिक्षण की प्रकृति कलात्मक एवं वैज्ञानिक दोनों तरह की होती है इन दोनों प्रकृति का मुख्य उ६ेश्य छात्रों के व्यवहारों में वांछित परिवर्तन लाने के उ६ेश्य से विभिन्न प्रकार की क्रियाएँ सम्पादित करना होता है और इन क्रियाओं के फलस्वरूप शिक्षण और सीखने वाली परिस्थितियों में सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।
shiksha ke lakshya- NCF 2005
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शिक्षा का लक्ष्यः क्या कहता है एनसीएफ-2005? भारत में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) का निर्माण करने की जिम्मेदारी एनसीईआरटी की है। यह संस्था समय-समय पर इसकी समीक्षा भी करती है। एनसीएफ-2005 के बनने का कार्य एनसीईआरटी के तत्कालीन निदेशक प्रो. कृष्ण कुमार के नेतृत्व में संपन्न हुआ। इसमें शिक्षा को बाल केंद्रित बनाने, रटंत प्रणाली से निजात पाने, परीक्षा में सुधार करने और जेंडर, जाति, धर्म आदि आधारों पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करने की बात कही गई है। शोध आधारित दस्तावेज़ तैयार करने के लिए 21 राष्ट्रीय फोकस समूह बने जो विभिन्न विषयों पर केंद्रित थे। इसके नेतृत्व की जिम्मेदारी संबंधित क्षेत्र के विषय विशेषज्ञों को दी गई। शिक्षा के लक्ष्य 1.एनसीएफ-2005 के अनुसार शिक्षा का लक्ष्य किसी बच्चे के स्कूली जीवन को उसके घर, आस-पड़ोस के जीवन से जोड़ना है। इसके लिए बच्चों को स्कूल में अपने वाह्य अनुभवों के बारे में बात करने का मौका देना चाहिए। उसे सुना जाना चाहिए। ताकि बच्चे को लगे कि शिक्षक उसकी बात को तवज्जो दे रहे हैं। 2. शिक्षा का दूसरा प्रमुख लक्ष्य है आत्म-ज्ञान (Self-...
Hindi bhasha ki visheshtayem
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लिपि देवनागरी हिंदी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। इसे नागरी नाम से भी पुकारा जाता है। देवनागरी में 11 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं और इसे बाएं से दायें और लिखा जाता है। 'हिन्दी' शब्द की व्युत्पत्ति हिन्दी शब्द का सम्बंध संस्कृत शब्द सिन्धु से माना जाता है। 'सिन्धु' सिन्ध नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके आस-पास की भूमि को सिन्धु कहने लगे। यह सिन्धु शब्द ईरानी में जाकर ‘ हिन्दू’ , हिन्दी और फिर ‘हिन्द’ हो गया बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के अधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा हिन्द शब्द पूरे भारत का वाचक हो गया। इसी में ईरानी का ईक प्रत्यय लगने से (हिन्द ईक) ‘हिन्दीक’ बना जिसका अर्थ है ‘हिन्द का’। यूनानी शब्द ‘इन्दिका’ या अंग्रेजी शब्द ‘इण्डिया’ आदि इस ‘हिन्दीक’ के ही विकसित रूप हैं। हिन्दी भाषा के लिए इस शब्द का प्राचीनतम प्रयोग शरफुद्दीन यज्+दी’ के ‘जफरनामा’(1424) में मिलता है। प्रोफेसर महावीर सरन जैन ने अपने " हिन्दी एवं उर्दू का अद्वैत " शीर्षक आलेख...
raajbhasha ke roop me Hindi aur raajbhasha ki vikas yatra
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हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किये जाने का औचित्य हिन्दी को राजभाषा का सम्मान कृपापूर्वक नहीं दिया गया, बल्कि यह उसका अधिकार है। यहां अधिक विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है, केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा बताये गये निम्नलिखित लक्षणों पर दृष्टि डाल लेना ही पर्याप्त रहेगा, जो उन्होंने एक ‘राजभाषा’ के लिए बताये थे- (1) अमलदारों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए। (2) उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए। (3) यह जरूरी है कि भारतवर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हों। (4) राष्ट्र के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए। (5) उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्प स्थायी स्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए। इन लक्षणों पर हिन्दी भाषा बिल्कुल खरी उतरती है। राजभाषा हिन्दी की विकास-यात्रा स्वतंत्रता पूर्व 1833-86 : गुजराती के महान कवि श्री नर्मद (1833-86) ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का विचार रखा। 1872 : आर्य समाज के संस्थापक महार्षि...