shikshan koushal
शिक्षण कौशल ( Teaching Skill)
शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक को अनेक कार्य एक साथ करने पड़ते हैं जैसे लिखना, प्रश्न पूछना, स्पष्ट करना, प्रदर्शन करना आदि इसलिये इसे क्रियाओं का सकुल कहा जाता है। अध्यापक का कार्य विद्यार्थी को इन क्रियाओं में संलग्न करना है। यह शिक्षण कौशल काफी तकनीकी युक्त और परिश्रमपूर्ण होते हैं। इन शिक्षण कौशलों की प्रकृति एक जैसी नही होती। इनमे निहित शिक्षण व्यवहारों में भी काफी अन्तर पाया जाता है और इसलिए उन सभी का अभ्यास और उन्हें विकसित करने की प्रक्रिया में अन्तर पाया जाना स्वाभाविक ही हैं।
वास्तव में शिक्षण कौशलों द्वारा शिक्षक के व्यवहार प्रदर्शित होते है। शिक्षक की सभी क्रियाएँ विद्यार्थियों के अधिगम की ओर केन्द्रित रहती हैं। शिक्षक की इन क्रियाओं में कभी व्याख्यान देना, कभी उदाहरण प्रस्तुत करना, कभी विशिष्ट शब्दों की व्याख्या करना तथा कभी कक्षा में कुछ करके दिखाना आदि सम्मिलित होता है। शिक्षण प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाली इस प्रकार की सभी क्रियाएँ ही शिक्षण कौशल कहलाती हैं।
वास्तव में शिक्षण कौशलों द्वारा शिक्षक के व्यवहार प्रदर्शित होते है। शिक्षक की सभी क्रियाएँ विद्यार्थियों के अधिगम की ओर केन्द्रित रहती हैं। शिक्षक की इन क्रियाओं में कभी व्याख्यान देना, कभी उदाहरण प्रस्तुत करना, कभी विशिष्ट शब्दों की व्याख्या करना तथा कभी कक्षा में कुछ करके दिखाना आदि सम्मिलित होता है। शिक्षण प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाली इस प्रकार की सभी क्रियाएँ ही शिक्षण कौशल कहलाती हैं।
यही विभिन्न शिक्षण क्रियाओं की सफलता ही शिक्षण कला बन जाती हैं। संक्षेप में शिक्षण कौशल शिक्षक के व्यवहारों का एक समूह होता है जो विद्यार्थियों के अधिगम में किसी न किसी रुप में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप में सहायता करता है।
श्री बी0 के0 पासी ने शिक्षण कौशल शब्द को इस प्रकार परिभाषित किया हैं:- “शिक्षण कौशल उन परस्पर सम्बन्धित शिक्षण-क्रियाओं या व्यवहारों का समूह हैं जो विद्यार्थी के अधिगम में सहायता देते हैं।“
एन0 एल0 गेज के अनुसार, ”शिक्षण कौशल वे अनुदेशनात्मक क्रियाएँ और विधियाँ है जिनका प्रयोग शिक्षक अपनी कक्षा में कर सकता है। ये शिक्षण के विभिन्न स्तरों से सम्बन्धित होती है या शिक्षक की निरन्तर निष्पति के रुप में होती हैं।“
शैक्षिक शब्दकोष के अनुसार, ”कौशल मानसिक शारीरिक क्रियाओं की क्रमबद्ध और समन्वित प्रणाली होता हैं।“
अतः शिक्षण कौशल मुख्यतया कक्षा में अन्तक्रिया जैसी परिस्थिति उत्पन्न करने में, अधिगम में, विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति में तथा शिक्षण क्रियाओं के विशिष्टीकरण में सहायक होते हैं। ये सभी शिक्षण कौशलों की विशेषताएँ है। सामाजिक अध्ययन को पढ़ाने के लिये कुछ शिक्षण कौशलों की अति अधिक आवश्यकता होती हैं। यदि प्रशिक्षण कार्यक्रम में विधिवत् सूक्ष्म शिक्षण पाठों का आयोजन किया जाए तो अध्यापक उचित अभ्यास के माध्यम से कुशल अध्यापक बनकर वांछित सफलता प्राप्त कर सकते है।
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