shikshan vidhiyam 3
खेल विधि
खेल
विधि -- 1. खेल पद्धति के प्रवर्तक हैनरी काल्डवैल कुक हैं । उन्होंने अपनी
पुस्तक प्ले वे में इसकी उपयुक्तता अंग्रेजी शिक्षण हेतु बतायी हैं ।
2. सबसे पहले महान शिक्षाशास्त्री फ्रोबेल ने खेल के महत्व को स्वीकार करके शिक्षा को पूर्ण रूप से खेल केन्द्रित बनाने का प्रयत्न किया था ।
3. फ्रोबेल ने इस बात पर जोर दिया कि विधार्थियों को संपूर्ण ज्ञान खेल - खेल में दिया जाना चाहिए ।
खेल में बालक की स्वाभाविक रूचि होती हैं ।
4. गणित की शिक्षा देने के लिए खेल विधि का सबसे अच्छा उपयोग इंग्लैंड के शिक्षक हैनरी काल्डवैल कुक ने किया था ।
खेल विधि के गुण --
1. मनोवैज्ञानिक विधि - खेल में बच्चें की स्वाभाविक रूचि होती है और वह खेल आत्मप्रेरणा से खेलता है । अतः इस विधि से पढ़ाई को बोझ नहीं समझता ।
2. सर्वांगीण विकास -- खेल में गणित संबंधी गणनाओं और नियमों का पूर्ण विकास होता है । इसके साथ साथ मानवीय मूल्यों का विकास भी होता हैं ।
3. क्रियाशीलता - यह विधि करो और सीखो के सिद्धांत पर आधारित है ।
4. सामाजिक दृष्टिकोण का विकास - इस विधि में पारस्परिक सहयोग से काम करने के कारण सामाजिकता का विकास होता हैं ।
5. स्वतंत्रता का वातावरण - खेल में बालक स्वतंत्रतापूर्वक खुले ह्रदय व मस्तिष्क से भाग लेता हैं ।
6. रूचिशील विधि - यह विधि गणित की निरसता को समाप्त कर देती हैं ।
खेल विधि के दोष -
1. शारीरिक शिशिलता
2. व्यवहार में कठिनाई
3. मनोवैज्ञानिक विलक्षणता
2. सबसे पहले महान शिक्षाशास्त्री फ्रोबेल ने खेल के महत्व को स्वीकार करके शिक्षा को पूर्ण रूप से खेल केन्द्रित बनाने का प्रयत्न किया था ।
3. फ्रोबेल ने इस बात पर जोर दिया कि विधार्थियों को संपूर्ण ज्ञान खेल - खेल में दिया जाना चाहिए ।
खेल में बालक की स्वाभाविक रूचि होती हैं ।
4. गणित की शिक्षा देने के लिए खेल विधि का सबसे अच्छा उपयोग इंग्लैंड के शिक्षक हैनरी काल्डवैल कुक ने किया था ।
खेल विधि के गुण --
1. मनोवैज्ञानिक विधि - खेल में बच्चें की स्वाभाविक रूचि होती है और वह खेल आत्मप्रेरणा से खेलता है । अतः इस विधि से पढ़ाई को बोझ नहीं समझता ।
2. सर्वांगीण विकास -- खेल में गणित संबंधी गणनाओं और नियमों का पूर्ण विकास होता है । इसके साथ साथ मानवीय मूल्यों का विकास भी होता हैं ।
3. क्रियाशीलता - यह विधि करो और सीखो के सिद्धांत पर आधारित है ।
4. सामाजिक दृष्टिकोण का विकास - इस विधि में पारस्परिक सहयोग से काम करने के कारण सामाजिकता का विकास होता हैं ।
5. स्वतंत्रता का वातावरण - खेल में बालक स्वतंत्रतापूर्वक खुले ह्रदय व मस्तिष्क से भाग लेता हैं ।
6. रूचिशील विधि - यह विधि गणित की निरसता को समाप्त कर देती हैं ।
खेल विधि के दोष -
1. शारीरिक शिशिलता
2. व्यवहार में कठिनाई
3. मनोवैज्ञानिक विलक्षणता
आगमन विधि
आगमन
विधि -- 1. इस शिक्षा प्रणाली में उदाहरणों की सहायता से सामान्य नियम का
निर्धारण किया जाता है, को
आगमन शिक्षण विधि कहते हैं 2. यह विधि विशिष्ट से
सामान्य की ओर शिक्षा सूत्र पर आधारित है ।
3. इसमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ा जाता है । उदाहरण स्थूल है, नियम सूक्ष्म ।
आगमन विधि के गुण --
1. यह शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है । इससे नवीन ज्ञान को खोजने का अवसर मिलता है और यह अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त करती हैं ।
2. इस विधि में विशेष से सामान्य की ओर और स्थूल से सूक्ष्म की ओर अग्रसर होने के कारण यह विधि मनोवैज्ञानिक हैं ।
3. नियमों को स्वयं निकाल सकने पर छात्रों में आत्मविश्वास की भावना का विकास होता हैं ।
4. इस विधि में रटने की प्रवृत्ति को जन्म नहीं मिलता हैं । अतः छात्रों को स्मरण शक्ति पर निर्भर रहना पड़ता है ।
5. यह विधि छोटे बच्चों के लिए अधिक उपयोगी और रोचक हैं ।
आगमन विधि के दोष --
1. यह विधि बड़ी कक्षाओं और सरल अंशों को पढ़ाने के लिए उपयुक्त हैं ।
2. आजकल की कक्षा पद्धति के अनुकूल नहीं है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत शिक्षण पर जोर देना पड़ता है
3. छात्र और अध्यापक दोनों को ही अधिक परिश्रम करना पड़ता है ।
3. इसमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ा जाता है । उदाहरण स्थूल है, नियम सूक्ष्म ।
आगमन विधि के गुण --
1. यह शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है । इससे नवीन ज्ञान को खोजने का अवसर मिलता है और यह अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त करती हैं ।
2. इस विधि में विशेष से सामान्य की ओर और स्थूल से सूक्ष्म की ओर अग्रसर होने के कारण यह विधि मनोवैज्ञानिक हैं ।
3. नियमों को स्वयं निकाल सकने पर छात्रों में आत्मविश्वास की भावना का विकास होता हैं ।
4. इस विधि में रटने की प्रवृत्ति को जन्म नहीं मिलता हैं । अतः छात्रों को स्मरण शक्ति पर निर्भर रहना पड़ता है ।
5. यह विधि छोटे बच्चों के लिए अधिक उपयोगी और रोचक हैं ।
आगमन विधि के दोष --
1. यह विधि बड़ी कक्षाओं और सरल अंशों को पढ़ाने के लिए उपयुक्त हैं ।
2. आजकल की कक्षा पद्धति के अनुकूल नहीं है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत शिक्षण पर जोर देना पड़ता है
3. छात्र और अध्यापक दोनों को ही अधिक परिश्रम करना पड़ता है ।
निगमन विधि
1. इस विधि में अध्यापक किसी नियम का सीधे ढ़ंग से उल्लेख करके उस पर आधारित प्रश्नों को हल करने और उदाहरणों पर नियमों को लागू करने का प्रयत्न करता हैं ।
2. इस विधि में छात्र नियम स्वयं नही निकालते, वे नियम उनकों रटा दिए जाते हैं और कुछ प्रश्नों को हल करके दिखा दिया जाता है
निगमन विधि के गुण --
1. बड़ी कक्षाओं में तथा छोटी कक्षाओं में भी किसी प्रकरण के कठिन अंशों को पढ़ाने के लिए यह विधि सर्वोत्तम है ।
2. यह विधि कक्षा पद्धति के लिए सबसे अधिक उपयोगी है ।
3. ज्ञान की प्राप्ति काफी तीव्र होती है । कम समय में ही अधिक ज्ञान दिया जाता है ।
4. ऊँची कक्षाओं में इस विधि का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वे नियम को तुरंत समझ लेते है ।
5. इस विधि में छात्र तथा शिक्षक दोनों को ही कम परिश्रम करना पड़ता है ।
6. इस विधि से छात्रों की स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है ।
निगमन विधि के दोष --
1. निगमन विधि सूक्ष्म से स्थूल की ओर बढ़ने के कारण शिक्षा सिद्धांत के प्रतिकूल है । यह विधि अमनोवैज्ञानिक है ।
2. इस विधि रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता हैं ।
3. इसके माध्यम से छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा नही होता ।
4. नियम के लिए इस पद्धति में दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है, इसलिएइस विधि से सीखने में न आनंद मिलता है और न ही आत्मविश्वास बढ़ता हैं ।
आगमन तथा निगमन विधि में तुलनात्मक निष्कर्ष --
1. आगमन विधि निगमन विधि से अधिक मनोवैज्ञानिक हैं ।
2. प्रारंभिक अवस्था में आगमन विधि अधिक उपयुक्त है परन्तु उच्च कक्षाओं में निगमन विधि अधिक उपयुक्त है क्योंकि इसकी सहायता से कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता हैं ।
1. इस विधि में अध्यापक किसी नियम का सीधे ढ़ंग से उल्लेख करके उस पर आधारित प्रश्नों को हल करने और उदाहरणों पर नियमों को लागू करने का प्रयत्न करता हैं ।
2. इस विधि में छात्र नियम स्वयं नही निकालते, वे नियम उनकों रटा दिए जाते हैं और कुछ प्रश्नों को हल करके दिखा दिया जाता है
निगमन विधि के गुण --
1. बड़ी कक्षाओं में तथा छोटी कक्षाओं में भी किसी प्रकरण के कठिन अंशों को पढ़ाने के लिए यह विधि सर्वोत्तम है ।
2. यह विधि कक्षा पद्धति के लिए सबसे अधिक उपयोगी है ।
3. ज्ञान की प्राप्ति काफी तीव्र होती है । कम समय में ही अधिक ज्ञान दिया जाता है ।
4. ऊँची कक्षाओं में इस विधि का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वे नियम को तुरंत समझ लेते है ।
5. इस विधि में छात्र तथा शिक्षक दोनों को ही कम परिश्रम करना पड़ता है ।
6. इस विधि से छात्रों की स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है ।
निगमन विधि के दोष --
1. निगमन विधि सूक्ष्म से स्थूल की ओर बढ़ने के कारण शिक्षा सिद्धांत के प्रतिकूल है । यह विधि अमनोवैज्ञानिक है ।
2. इस विधि रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता हैं ।
3. इसके माध्यम से छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा नही होता ।
4. नियम के लिए इस पद्धति में दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है, इसलिएइस विधि से सीखने में न आनंद मिलता है और न ही आत्मविश्वास बढ़ता हैं ।
आगमन तथा निगमन विधि में तुलनात्मक निष्कर्ष --
1. आगमन विधि निगमन विधि से अधिक मनोवैज्ञानिक हैं ।
2. प्रारंभिक अवस्था में आगमन विधि अधिक उपयुक्त है परन्तु उच्च कक्षाओं में निगमन विधि अधिक उपयुक्त है क्योंकि इसकी सहायता से कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता हैं ।
प्रायोजना विधि
1. प्रायोजना विधि के प्रवर्तक अमेरिकी शिक्षाविद विलियम हैनरी किलपैट्रिक थे । ये जाॅन ड्युवी के शिष्य थे ।
2. परिभाषा -"प्रोजेक्ट वह सह्रदय सौउद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में किया जाता है ।" - किलपैट्रिक
" प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है जो स्वाभाविक स्थिति में पूरा किया जाता है ।" - प्रो• स्टीवेंसन
" क्रिया की एक ऐसी इकाई जिसके नियोजन एवं क्रियान्वन के लिए चार स्वयं ही उत्तरदायी हो ।" - पारकर
3. इस विधि में कोई कार्य छात्रों के सामने समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और उस समस्या को बालक स्वयं सुलझाने का प्रयास करता है ।
4. प्रोजेक्ट विधार्थियों के जीवन से संबंधित किसी समस्या का हल खोजने के लिए किया जाने वाला कार्य है जो स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्ण किया जाता है ।
प्रायोजना विधि के चरण :--
1. परिस्थिति उत्पन्न करना - इसमें बालकों की स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण होती है ।
2. प्रायोजना का चुनाव - प्रोजेक्ट के चुनाव में शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है ।
3. प्रायोजना का नियोजन - इसके अंतर्गत प्रायोजना का कार्यक्रम बनाना पड़ता है ।
4. प्रायोजना का क्रियान्वन - इस स्तर पर शिक्षक कार्यक्रम की योजना के अनुसार सभी छात्रों को आवंटित करता है ।
5. प्रायोजना का मूल्यांकन - प्रायोजना की क्रियान्विती पूर्ण होने पर छात्र तथा शिक्षक इस बात का मूल्यांकन करते हैं कि कार्य में कहा तक सफलता मिली ।
6. प्रायोजना का अभिलेखन - इस चरण के अंतर्गत प्रायोजना से संबंधित सभी बातों का उल्लेख किया जाता है ।
प्रायोजना विधि के गुण -
1. यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित विधि है जिसमें बालक को स्वतंत्रतापूर्वक सोचने, विचारने, निरिक्षण करने तथा कार्य करने का अवसर मिलता है ।
2. प्रोजेक्ट संबंधी क्रियाएं सामाजिक वातावरण में पूरी की जाती है । इस कारण छात्रों में सामाजिकता का विकास होता है ।
3. इस विधि में छात्र स्वयं करके सीखते है, अतः प्राप्त होने ज्ञान स्थायी होता है ।
4. प्रायोजना का चुनाव करते समय छात्रों की रुचियों, क्षमताओं और मनोभावों को ध्यान में रखा जाता है ।
प्रायोजना विधि के दोष -
1. इस विधि द्वारा सभी प्रकरणों का अध्ययन नहीं कराया जा सकता ।
2. इस विधि में प्रशिक्षित अध्यापक की आवश्यकता होती है ।
3. प्रायोजना विधि अधिक खर्चीली है ।
4. इस विधि में अधिक समय लगता है ।
1. प्रायोजना विधि के प्रवर्तक अमेरिकी शिक्षाविद विलियम हैनरी किलपैट्रिक थे । ये जाॅन ड्युवी के शिष्य थे ।
2. परिभाषा -"प्रोजेक्ट वह सह्रदय सौउद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में किया जाता है ।" - किलपैट्रिक
" प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है जो स्वाभाविक स्थिति में पूरा किया जाता है ।" - प्रो• स्टीवेंसन
" क्रिया की एक ऐसी इकाई जिसके नियोजन एवं क्रियान्वन के लिए चार स्वयं ही उत्तरदायी हो ।" - पारकर
3. इस विधि में कोई कार्य छात्रों के सामने समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और उस समस्या को बालक स्वयं सुलझाने का प्रयास करता है ।
4. प्रोजेक्ट विधार्थियों के जीवन से संबंधित किसी समस्या का हल खोजने के लिए किया जाने वाला कार्य है जो स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्ण किया जाता है ।
प्रायोजना विधि के चरण :--
1. परिस्थिति उत्पन्न करना - इसमें बालकों की स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण होती है ।
2. प्रायोजना का चुनाव - प्रोजेक्ट के चुनाव में शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है ।
3. प्रायोजना का नियोजन - इसके अंतर्गत प्रायोजना का कार्यक्रम बनाना पड़ता है ।
4. प्रायोजना का क्रियान्वन - इस स्तर पर शिक्षक कार्यक्रम की योजना के अनुसार सभी छात्रों को आवंटित करता है ।
5. प्रायोजना का मूल्यांकन - प्रायोजना की क्रियान्विती पूर्ण होने पर छात्र तथा शिक्षक इस बात का मूल्यांकन करते हैं कि कार्य में कहा तक सफलता मिली ।
6. प्रायोजना का अभिलेखन - इस चरण के अंतर्गत प्रायोजना से संबंधित सभी बातों का उल्लेख किया जाता है ।
प्रायोजना विधि के गुण -
1. यह मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित विधि है जिसमें बालक को स्वतंत्रतापूर्वक सोचने, विचारने, निरिक्षण करने तथा कार्य करने का अवसर मिलता है ।
2. प्रोजेक्ट संबंधी क्रियाएं सामाजिक वातावरण में पूरी की जाती है । इस कारण छात्रों में सामाजिकता का विकास होता है ।
3. इस विधि में छात्र स्वयं करके सीखते है, अतः प्राप्त होने ज्ञान स्थायी होता है ।
4. प्रायोजना का चुनाव करते समय छात्रों की रुचियों, क्षमताओं और मनोभावों को ध्यान में रखा जाता है ।
प्रायोजना विधि के दोष -
1. इस विधि द्वारा सभी प्रकरणों का अध्ययन नहीं कराया जा सकता ।
2. इस विधि में प्रशिक्षित अध्यापक की आवश्यकता होती है ।
3. प्रायोजना विधि अधिक खर्चीली है ।
4. इस विधि में अधिक समय लगता है ।
अनुसंधान विधि Discovery Methods)
1. इस विधि को खोज या अन्वेषण विधि भी कहते हैं ।
2. प्रो• एच• ई• आर्मस्ट्रांग ने विज्ञान शिक्षण विधि में इस अनुसंधान विधि का सुत्रपात किया ।
3. इस विधि का आधार आर्मस्ट्राग ने हरबर्ट स्पेन्सर के इस कथन पर रखा कि " बालकों को जितना संभव हो, बताया जाए और उनको जितना अधिक संभव हो, खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाए ।"
4. इस विधि का प्रमुख उद्देश्य बालकों में खोज की प्रवृत्ति का उदय करना है ।
5. इस विधि में छात्र पर ज्ञान उपर से लादा नही जाता, उन्हें स्वयं सत्य की खोज के लिए प्रेरित किया जाता है ।
6. अध्यापक का कर्तव्य है कि वह बच्चे को कम से कम बताएं और उसे स्वयं अधिक से अधिक सत्य प्राप्त करने का अवसर प्रदान करें ।
अनुसंधान विधि की कार्यप्रणाली --
1. इस विधि में छात्र के सामने कोई समस्या प्रस्तुत की जाती है । प्रत्येक बालक को व्यक्तिगत रूप से कार्य करने की स्वतंत्रता दी जाती है ।
2. आवश्यकता पड़ने पर बालक परस्पर वाद विवाद करते हैं, प्रश्न पुते हैं तथा पुस्तकालय में जाकर पुस्तक देखते है ।
अनुसंधान विधि के गुण ---
1. बालको को स्वयं करके सीखने को प्रेरित करती है ।
2. छात्रों में वैज्ञानिक अभिरूचि तथा दृष्टिकोण उत्पन्न करती है ।
3. छात्रों में स्वाध्याय की आदत बनती है ।
4. छात्र क्रियाशील रहते है, जिससे अर्जित ज्ञान स्थायी होता है ।
5. छात्रों में परिश्रम करने की आदत पड़ जाती है ।
6. छात्रों में आत्मानुशासन, आत्म संयम तथा आत्मविश्वास जागृत होता है ।
7. सफलता प्राप्त करने पर छात्र उत्साही होते है तथा उन्हें प्रेरणा मिलती हैं ।
अनुसंधान विधि के दोष --
1. छोटी कक्षाओं के लिए अनुसंधान विधि उपर्युक्त नहीं है क्योंकि तार्किक व निरिक्षण शक्ति का विकास छोटे बच्चों में नहीं हो पाता ।
2. इस शिक्षण विधि में मंद बुद्धि विधार्थी आगे नही बढ़ पाते हैं तथा पाठ्यक्रम धीरे धीरे आगे बढ़ते है ।
3. यह विधि प्रतिभावान बच्चों के लिए उपयुक्त है । पूरी कक्षा के लिए नहीं ।
4. प्राथमिक स्तर के बालक समस्या का विश्लेषण करने में असमर्थ होते है ।
1. इस विधि को खोज या अन्वेषण विधि भी कहते हैं ।
2. प्रो• एच• ई• आर्मस्ट्रांग ने विज्ञान शिक्षण विधि में इस अनुसंधान विधि का सुत्रपात किया ।
3. इस विधि का आधार आर्मस्ट्राग ने हरबर्ट स्पेन्सर के इस कथन पर रखा कि " बालकों को जितना संभव हो, बताया जाए और उनको जितना अधिक संभव हो, खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाए ।"
4. इस विधि का प्रमुख उद्देश्य बालकों में खोज की प्रवृत्ति का उदय करना है ।
5. इस विधि में छात्र पर ज्ञान उपर से लादा नही जाता, उन्हें स्वयं सत्य की खोज के लिए प्रेरित किया जाता है ।
6. अध्यापक का कर्तव्य है कि वह बच्चे को कम से कम बताएं और उसे स्वयं अधिक से अधिक सत्य प्राप्त करने का अवसर प्रदान करें ।
अनुसंधान विधि की कार्यप्रणाली --
1. इस विधि में छात्र के सामने कोई समस्या प्रस्तुत की जाती है । प्रत्येक बालक को व्यक्तिगत रूप से कार्य करने की स्वतंत्रता दी जाती है ।
2. आवश्यकता पड़ने पर बालक परस्पर वाद विवाद करते हैं, प्रश्न पुते हैं तथा पुस्तकालय में जाकर पुस्तक देखते है ।
अनुसंधान विधि के गुण ---
1. बालको को स्वयं करके सीखने को प्रेरित करती है ।
2. छात्रों में वैज्ञानिक अभिरूचि तथा दृष्टिकोण उत्पन्न करती है ।
3. छात्रों में स्वाध्याय की आदत बनती है ।
4. छात्र क्रियाशील रहते है, जिससे अर्जित ज्ञान स्थायी होता है ।
5. छात्रों में परिश्रम करने की आदत पड़ जाती है ।
6. छात्रों में आत्मानुशासन, आत्म संयम तथा आत्मविश्वास जागृत होता है ।
7. सफलता प्राप्त करने पर छात्र उत्साही होते है तथा उन्हें प्रेरणा मिलती हैं ।
अनुसंधान विधि के दोष --
1. छोटी कक्षाओं के लिए अनुसंधान विधि उपर्युक्त नहीं है क्योंकि तार्किक व निरिक्षण शक्ति का विकास छोटे बच्चों में नहीं हो पाता ।
2. इस शिक्षण विधि में मंद बुद्धि विधार्थी आगे नही बढ़ पाते हैं तथा पाठ्यक्रम धीरे धीरे आगे बढ़ते है ।
3. यह विधि प्रतिभावान बच्चों के लिए उपयुक्त है । पूरी कक्षा के लिए नहीं ।
4. प्राथमिक स्तर के बालक समस्या का विश्लेषण करने में असमर्थ होते है ।
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